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Saturday 7 July 2012

Conspiracy of foreign countries and companies against India



देश की लगभग 99 % जनता को लगता है कि देश व दुनियाँ जैसे सामने से दिख रही है वैसे ही सरलता, सहजता, समरसता, प्रेम, सदभावना, समझदारी, लोकतान्त्रिक एवं न्यायपूर्ण तरीको से चल रही है। दुर्भाग्य से जैसे हमें दिख रहा है वैसे दुनियाँ नहीं चल रही है। उदाहरण के तौर पर हम चार विषय प्रस्तुत कर रहे हैं।

1. राजनैतिक षड्यन्त्र : भारत का प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, विदेशमंत्री व रक्षामंत्री ऐसा व्यक्ति बनना चाहिए जो अमेरिका व अमेरिकन कंपनियों तथा अन्य विदेशी कंपनियों के हित में नितियाँ बनाने वाला हो, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय नितियों व विषयों पर अमेरिका के नितियों का समर्थन हो, इसके लिए विदेशी ताकतें सामाजिक व आर्थिक रूप से एक लम्बी कार्ययोजना के तहत काम करती हैं। मिडिया मैनेजमेन्ट से लेकर इमेज-बिल्डिंग के लिए बहुत ही बुद्धिमत्ता के साथ काम करती हैं। आने वाले 5 वर्षों से लेकर 50 वर्षों तक भारत के विकास के माडल कैसे हों जिससे कि विदेशी कंपनियाँ अपनी तकनीक, अपनी फैक्ट्रियाँ एवं अनुसंधान उसी दिशा में करें और विदेशों की प्रतिबंधित दवा, हथियार व अन्य उत्पाद भारत में खपते रहें, भारत एक डैम्पिंग सेन्टर बन जाए, इस प्रकार बहुत से ऐसे विषय हैं। हमारी संसद में भी अमेरिका, यूरोप व अन्य विदेशी कंपनियों तथा उन देशों के समर्थक लोगों को बाकायदा फाइनेंश करके तथा अनेक प्रकार से परोक्ष रूप से मदद करके संसद में तथा विधानसभाओं में भेजा जाता है, जिससे की देश के जल, जंगल, जमीन, भू-सम्पदाओं पर विदेशी कंपनियों का कब्जा हो सके। F.D.I.यानी विदेशी पूँजी निवेश के जरिए विदेशी कंपनियों व भ्रष्टाचार करके देश को लूटने वाले लोगों का भारत के सभी आर्थिक संस्थानों, रिटेल से लेकर शेयर मार्केट तक पूरी अर्थव्यवस्था पर इनका वर्चस्व कायम हो सके, इसके लिए वे बहुत ही कूटनीतिक तरीके से ये विदेशी ताकतें तात्कालिक, मध्यकालिक व मध्यकालिक व दिर्घकालिक योजना के तहत काम करती हैं।

2. आर्थिक षड्यन्त्र : किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत होती है वहाँ की मजबूत अर्थव्यवस्था। पहले देशों को भौगोलिक रूप से गुलाम बनाकर आर्थिक रूप से लूटा जाता था। अब आर्थिक रूप से गुलाम बनाने का बहुत बड़ा कुचक्र चल रहा है। इस आर्थिक लूट के चक्रव्यूह के जाल का ताना-बाना ऐसे बुना जाता है कि सामान्य व्यक्ति की समझ में तो ये बातें आ ही नहीं सकती। बड़े-बड़े बुद्धिमान लोग भी धोखा खा जाते हैं। किसी भी देश की G.D.P.यानी अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य आधार होते हैं। अग्रीकल्चर, इन्डस्ट्री एवं सर्विसेज। हमारे जल, जंगल, जमीन, भू-सम्पदा एवं बौद्धिक सम्पदाओं का विदेशी कंपनियाँ पूरा शोषण व दोहन कर रही हैं। आज रिटेलर से लेकर शेयर मार्केट तक, हैल्थ, एजुकेशन, रिसर्च एण्ड डेवलप्मेन्ट, मीडिया, रक्षा सामान, पेट्रोलियम प्रोडक्ट से लेकर हमारे देवी-देवता, बच्चों के खिलौने, टी.वी., गाड़ी, मोबाईल, साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट से लेकर जीवन की हर जरूरत का हर सामान विदेशी कंपनियाँ बेच रही हैं। एक तरह से हमने अपना पूरा देश विदेशी कंपनियों के हाथों में गिरवी रख दिया है। अमेरिका, चीन, जर्मनी व जापान आदि स्वदेशी के रास्ते पर चलकर खुद को स्वावलम्बी बना रहे हैं। हम भारतवासी भी बिना स्वदेशी के अपने देश को स्वावलम्बी नहीं बना सकते।


3. सामाजिक षड्यन्त्र : सामाजिक रूप से देश का कौन नेतृत्व करेगा, सामाजिक आवाज के रूप में किसे सुना जायेगा। किसे आर्थिक, राजनैतिक व अन्य विषयों में विशेषज्ञ का दर्जा मिलेगा। कौन विश्वसुन्दरी होगी? शोश्यल एक्टिविस्ट के रूप में देश में किसे स्थापित करना है। इसके लिए विदेशी सरकारें, विदेशी कंपनियाँ एवं विदेशी फाउंडेशन्स भारतीय एन.जी.ओ. को दान करती हैं। जो विदेशी कंपनियाँ अमेरिका व यूरोप के हितों में काम करें, उसे बाकायदा अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जाता है। जिससे उनकी देश में प्रतिष्ठा बढ़े, उन्हें विश्वसुन्दरी आदि के पुरस्कार दिये जाते हैं, जिससे कि विदेशी कंपनियों का सामान बेचने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा सके। ऐसे कानून पास करवाने के लिए भी विदेशी कंपनियाँ एन.जी.ओ. को दान देती हैं, जिससे उस देश से उनको जरूरी सुचनाएँ प्राप्त करने में आसानी हो और सरकारी संस्थाएँ कमजोर पड़ें जिससे विदेशी कंपनियों व प्राईवेट क्षेत्र के बड़े-बड़े पूँजीपति अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकें। ये सब कार्य इतनी होशियारी से किया जाता है कि इनके खिलाफ उठाने वाले व्यक्ति को ही ये अपराधी या दोषी के रूप में प्रमाणित कर देते हैं।


4. नैतिक षड्यन्त्र : हमारे देश कि संस्कृति, सभ्यता, संयम, सदाचार एवं प्राचीन मूल्य, आदर्शों व गौरव के सभी प्रतीकों, हमारे महापुरुषों, देवी-देवताओं, गौ, गंगा, गायत्री व वेदों से लेकर भगवान राम, कृष्ण व शिव आदि महापुरुषों के बारे में झूठी बातें प्रचारित करना। महापुरुषों को काल्पनिक बताना तथा रामायण व महाभारत आदि महाकाव्यों को उपन्यास बताकर अपने प्राचीन गौरव को झुठलाने का प्रयास करना। टी.वी. पर ऐसे सीरियल व मनोरंजन के नाम पर ऐसी फिल्में बनवाना व उसमें भोग विलास व दुराचार को ग्लैमर के साथ प्रस्तुत करके देश के लोगों के पुरुषार्थ व चरित्र को नष्ट करने का एक बहुत बड़ा षड्यन्त्र रचा जाता है। ऐसे अश्लील कार्यक्रमों के लिए विज्ञापन खूब मिलें, इसके लिए टी.आर.पी. तय करने वाली कंपनी भी 100% विदेशी नियन्त्रण वाली है। वह टी.आर.पी. बताने वाली विदेशी कंपनी परोक्ष रूप से देश के सभी चैनलों का नियन्त्रण करती हैं। देश की भाषा, भेषज्, भजन, भोजन, भाव व संस्कृति के विनाश का बहुत बड़ा षड्यन्त्र चल रहा है। देश के चरित्र को नष्ट करने का ये चक्रव्यूह हमने नहीं तोड़ा तो देश की बहुत बड़ी हानि हो रही है और आगे बड़ा खतरा आने वाला है। इसी तरह देश में जाति, धर्म व मजहब के नाम पर भी बहुत प्रकार के षड्यन्त्र चलते रहते हैं।
आंदोलन का नेतृत्व करने वाले कार्यकर्ताओं को इन सब बातों का गंभीरता से ध्यान रखकर सावधानी पुर्वक खुद इन षड्यन्त्रों से बचना चाहिए व सामान्य कार्यकर्ताओं को भी सावधान करते रहना चाहिए।


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