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Sunday 26 May 2013

सांप्रदायिक हिंसा अधिनियम, सच्चर आयोग तथा कथित भगवा आतंकवाद !

वैशाख शुक्ल १२ , कलियुग वर्ष ५११५

वर्तमानमें सरकारकी एवं राजनेताओंकी नीति हिंदुओंका गला दबानेवाली है । ऐसा प्रतीत होता है कि, नए अधिनियम हिंदू धर्म एवं संस्कृतिको नष्ट करनेके उद्देश्यसे सिद्ध किए गए हैं । ऐसी परिस्थितिमें हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों एवं अन्य समविचारी संगठनोंमें इस विषयमें जागृति करना, यह एक महान राष्ट्रकार्य है । इस लेखमें ऐसे ही कुछ हिंदूविरोधी अधिनियमके विषयमें जागृति करनेका प्रयास कर रहे हैं ।

संकलनकर्ता : अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर, उच्च न्यायालय, मुंबई

१. हिंदुओंकी दृष्टिसे अनुचित समझे जानेवाले सांप्रदायिक हिंसाविरोधी अधिनियम  तथा उसमें स्थित अन्यायकारी व्यवस्था

        ‘सांप्रदायिक हिंसाविरोधी अधिनियम ’के विषयमें हमने एक चर्चासत्र आयोजित किया है । आपमें से अनेक लोगोंको इस अधिनियमके  विषयमें गहन  जानकारी भी है  । मैं इस अधिनियमकी  धाराएं पढकर नहीं सुनाऊंगा  । ब्रिटिश सत्तामें नमकपर लगान लगानेवाले, बंगालका विभाजन करनेवाले तथा समाचारपत्रोंपर प्रतिबंध लगानेवाले इत्यादि अधिनियम  थे, जिन्हें हम ‘काले कानून’ कहते थे । यह सभी अधिनियम  भी सफेद प्रतीत होंगे, ऐसा अनुचित अधिनियम  पारित करनेका सरकारका प्रयास है । हिंदुओंके विरोधमें किसी भी आरोपी rको अर्थात् कार्यवाही करनेवाले (संज्ञेय) एवं प्रतिभू पात्र अपराध मानकर उसके लिए विशेष न्यायालय अथवा अल्पसंख्यकोंके परिवदियोंको करदाताकी राशिमेंसे उनके ही धर्मके अभिवक्ताका प्रबंध करनेके समान अन्यायकारक व्यवस्था इस अधिनियममें  किया गया है ।

१ अ. अधिनियमकी  कष्टदायक परिभाषा तथा हिंसाचारका प्रमुख कारण

१ अ १. अधिनियमें स्थित भेदभावकी कष्टदायक परिभाषा : इस अधिनियममें  ‘भेदभाव’की परिभाषा व्यापक स्वरूपमें की गई है, अतः यदि किसी घरमालिकद्वारा  मुसलमान किराएदारको घर किराएपर देनेके लिए अस्वीकृत किया गया , तो धार्मिक भेदभावके नामपर परिवाद कर वह मुसलमान उस हिंदू घरमालिकको कारागृहमें भेज सकता है ।

१ अ २. हिंदुओंके कारण नहीं, तो मुसलमानोंकी घमंडी  वृत्ति तथा राजनेताओंके नाकर्तापनके कारण केवल भारतमें ही हिंसाचार होते हैं  ! : कसाब भारतमें कैसे आया ? उसके जीवनमें वह कभी किसी हिंदूसे नहीं मिला, फिर भी हिंदुओंके प्रति क्षुब्ध होकर वह यहां नरसंहार करने हेतु आया । पाकिस्तानमें निवासी हिंदू नष्ट हो गए अतः अब वहां शिया पंथीय विरोधी हिंसाचार करते हैं । तो हिंसाचार करनेवाले कौन ? हिंदू दंगाई हैं, तो भारतमें हिंदू-शिया दंगे क्यों नहीं होते ? हिंसाचारेके पीछे एक मानसिकता होती है । उनमें यह घमंड होता है कि, ‘मैं सर्वश्रेष्ठ हूं । मेरी ओर देखेंगे, तो मैं आपकी हत्या करूंगा । आपके  परिवारपर अत्याचार करूंगा ।’ बाबरी मस्जिद  टूटी, उस समय इसी मानसिकताके आधारपर ही उत्तर प्रदेशमें तथा संपूर्ण देशमें दंगा हुआ । । देशके कितने मुसलमान बाबरी मस्जिदमें गए थे ? अक्षरधाम मंदिरपर आक्रमण हुआ, परंतु भारतमें हिंदुओंद्वारा दंगे नहीं हुए । बुद्धका अनादर अफगानिस्तानमें हुआ; परंतु श्रीलंकामें दंगा नहीं हुआ । यदि अमरिकामें  किसीके द्वारा  कुराण जलाया जाता है, तो मुंबईमें वातावरण क्षुब्ध हो जाता है । यह कैसी मानसिकता है ? गोध्रामें क्या हुआ ? पूरा रेलका डिब्बा ही जला दिया गया ! बाबरी टूटनेके पश्चात् आग लगाकर हिंदुओंको जलाया गया । परिणाम-स्वरूप  हिंसाचार हुआ और विस्फोटकर सहस्त्रों हिंदुओंकी हत्या की गई । इस्त्रायलमें कुछ होनेपर  मुंबईमें प्रदर्शन होता है । कसाबकी प्रतिमा जलानेका प्रयास कुछ युवकोंने किया, तो मुसलमानोंकी भावना आहत होगी, इसलिए मुंबई पुलिसने उनकी क्रूरतासे पिटाई की । इस घमंडी  वृत्तिके कारण हिंसाचार किया जाता है । हिंदुओंकी  वृत्ति इस प्रकारकी नहीं हैं । अतः मेरा कहना इतना ही है कि, जिनके पास हैं, उनकी ओर पहले देखें ।

१ अ ३. अल्पसंख्यकोंकी बढती संख्या तथा हिंदुओंकी दिन प्रतिदिन घटती  जनसंख्या : कहते हैं कि, यह कानून बननेसे दंगाफसाद न्यून होंगे, अर्थातदंगा क्या केवल हिंदू ही करते हैं ? दंगा कौन करता है, यह निश्चित करना है, तो अपने आपसे पूछें । ८० प्रतिशत अल्पसंख्यकोंकी बस्तीमें २० प्रतिशत हिंदू क्या कभी शांतिसे रह सकते हैं ? यदि ५ प्रतिशत हिंदू रहें, तो भी उन्हें जीवित नहीं रखा जाता । पाकिस्तानका ही उदाहरण देख सकते हैं । वहां हिंदुओंकी जनसंख्या १८ प्रतिशतसे १ प्रतिशतपर आ गई है । वहांके लोग हिंदुओंको स्वीकार नहीं कर सकते । भारतमें अनेक गांवोंमे और नगरोंमें २-३ प्रतिशतसे १० से १५ प्रतिशततक अल्पसंख्यक हैं; परंतु वहां एक बार भी दंगा नहीं हुआ । कुछ विशिष्ट अल्पसंख्यंकोंकी संख्या १५ से २० प्रतिशत हो जानेपर उनकेद्वारा दंगेआरंभ होते हैं ।  उनकी संख्या ९५ प्रतिशतसे अधिक हो, तो ही दंगोंपर प्रतिबंध लग सकता है । अर्थात वह होनेपर भी शांति नहीं आएगी । वहांके ५ प्रतिशत हिंदुओंको गुलाम बनकर  रहना पडेगा; किंतु वहांके आतंकवादी अन्य स्थानोंपर जाकर विस्फोट करेंगे ।

१ आ. भेदभावकी  कष्टदायी परिभाषाके कारण होनेवाले दुष्परिणाम

        इस कानूनमें स्थित कष्टदायी परिभाषाके कारण अधिकांश दुष्परिणामोंका सामना करना पडेगा ।
१ आ १. धर्माभिमानी हिंदुओंको कारागृहमें जाना पडेगा ! :  यदि यह कानून पारित हो गया, तो सभी हिंदू युवक कारागृहमें बंदी बनाए जाएंगे । धर्मकी बात करना भी असंभव होगा । महाराष्ट्रमें अफजलखान वधका चित्र प्रदर्शित करनेपर  पुलिसद्वारा बंदी बनाया जाता है । यदि कल मुसलमानने उर्दूमें पूछे गए प्रश्नका उर्दूमें ही उत्तर नहीं दिया गया, तो भी बंदी बनाया जाएगा । आरोप सत्य हो अथवा असत्य हो, इस कानूनके अनुसार अप्रतिपूर्ति हेतु पात्र अपराध प्रविष्ट किया गया, तो हिंदू आरोपीके रूपमें बंदी बनाए जाएंगे । एक व्यक्ति कारागृहमें जाता  है, तो जैसे उसका पूरा परिवार ही कारागृहमें बंदी बनाया जाता है । ऐसे व्यक्तिको उदरनिर्वाहका साधन भी शेष नहीं रहता । यदि वह व्यक्ति सरकारी नौकरी करता है , तो उसका निलंबन होता है ।
१ आ २. हिंदू लडकीके साथ विवाह करनेके लिए मुसलमान खुले आम आगे आएंगे ! : मेरे उत्तर भारतीय, साथ ही राजस्थान एवं गुजरातके कुछ मित्र हैं । मैंने उन्हें बताया, ‘‘आप लोग वधु-वर परिचय सम्मेलन  आयोजित करते हैं । विभिन्न समाजद्वारा भी यह सम्मेलन  आयोजित किया जाता है । उदा. गुजरातका पटेल समाज, राजस्थानका खंडेलवाल समाज, बिहारका अथवा उत्तर प्रदेशके भूमिहार इत्यादि । कल ४ - ५ मुसलमान युवक वहां आए और उनका नाम पंजीकृत करने हेतु कहें उन्हें आप वापस नहीं भेज  सकते । आपकी बेटीके साथ वह बातचीत करेंगे तथा उसके लिए वह किस प्रकार योग्य वर है, यह उसके मनपर अंकित करनेका प्रयास करेंगे । संविधानके अनुसार अंतरधर्मीय विवाह करना अपराध नहीं हैं । ‘समारोह केवल हमारे लिए ही हैं’ ऐसा कहनेपर मुसलमानोंके विरोधमें भेदभाव होगा ! जो लडकी उनसे बातचीत नहीं करेगी, उसके पिताको कारागृहमें जाना पडेगा ।’’ यह अनादर कहांतक ले जाएगा, इसका विचार हिंदुओंको करना होगा ।

१ आ ३. अल्पसंख्यकोंके एकजुटके कारण होनेवाले अनिष्ट परिणाम : अब बननेवाले  कानूनमें अल्पसंख्यकोंका पक्ष उनके समाजका अधिवक्ता ही प्रस्तुत करेगा ! उसका शुल्क सरकार देगी । अल्पसंख्य समाजकी एकजुट देखते हुए उन्हें  झूठी साक्ष्य  देनेवाले सहज प्राप्त होंगे । अब तो ऐसा ही होगा ! ‘पहले ही मर्कट उसमें मद्य प्राशन किया हुआ’, ऐसी इस अल्पसंख्य समाजकी स्थिति होगी ।

१ आ ४. कानूनके माध्यमसे फंसाकर धर्मपरिवर्तन करनेवालोंको अनायास ही उत्तेजना प्राप्त होगी ! : भविष्यमें यह भी होगा कि, हिंदुओंके साथ कुछ विवाद हुआ कि, उसे कारागृहमें बंदी बनाया जाएगा । पहले ही इस देशमें फंसाकर तथा धन देकर धर्मपरिवर्तन हो रहा है । भविष्यमें पहले किसीको परिवादी बनाया जाएगा । तत्पश्चात उसके पूरे परिवारका ही धर्मपरिवर्तन किया जाएगा । यह हुआ, तो आश्चर्य की बात नहीं होगी ।

१ इ. अन्यायकारक कानूनके पीछे देशद्रोही राजनेता ही उत्तरदायी ! : ऐसा कहा जाता है कि, ‘कानून गधा होता है । न्यायदेवता अंधी होती है ।’ दोष कानूनका नहीं, न्यायदेवताका नहीं, तो राजनेताओंका है। राजनीतिज्ञ ही देशद्रोही होनेके कारण यह कानून पारित हुए हैं ।

१ इ १. कश्मीरके लिए ‘सांप्रदायिक हिंसाविरोधी कानून’ लागू नहीं हैं ! : ब्रिटिशोंकी ‘फूट डालो तथा राज्य करो’  इस नीतिको भारतीय राजनेताओंने अधिक तीव्र किया है; क्योंकि ‘सांप्रदायिक हिंसा कानून’ कश्मीरमें  लागू नहीं है । यदि आज ब्रिटिश होते, तो वे यह कानून न्यूनतम कश्मीरमें तो लागू करते ।

१ इ २. गोवाके समान संपूर्ण देशमें समान नागरी अधिनियम  पारित न होनेके  लिए केवल राजनेता ही उत्तरदायी ! : जिस गोवामें हम सब एकत्रित हुए हैं, वहां समान नागरी कानून पारित किया गया है एवं मुसलमान उसका मूक पालन भी करते हैं । शेष भारतमें यह अधिनियम  लागू नहीं हुआ है। उसके लिए उत्तरदायी कौन हैं ? राजनेता  अथवा मुसलमान ?

१ ई. ‘धार्मिक तथा लक्ष्यित हिंसा प्रतिबंधक अधिनियम’पर प्रतिबंध लगाने हेतु यह करें !

१ ई १. इस कठोर अधिनियमका  प्रारूप अधिकांश लोगोंतक पहुंचाइए  ! : इस अधिनियमका प्रारूप केवल हिंदी तथा अंग्रेजी भाषामें ही उपलब्ध है । अतः अधिकांश राज्योंके लोगोंको इस विषयके संबंधमें ज्ञान होना भी असंभव हैं; इसलिए इस अधिनियमका अनुवाद तथा उसके  कारण होनेवाले दुष्परिणाम अधिकांश लोगोंतक पहुंचाइए  । ‘हिंदू जनजागृति समिति’द्वारा इस  अधिनिय  के विषयमें एक पत्रक प्रकाशित किया गया है । उस पत्रकको स्थानीय भाषामें अनुवादित कर हम उसका उपयोग कर सकते हैं ।

१ ई २. वैध आंदोलनमें सम्मिलित हों ! : इस कानूनके विरुद्ध विभिन्न संगठनोंद्वारा किए जानेवाले वैधानिक आंदोलनमें स्वयं सम्मिलित होकर अन्योंको भी प्रवृत्त करें !


१ ई ३. विधायकोंका प्रबोधन करें ! : अपने मतदारसंघके विधायकोंसे मिलकर संसदमें इस अधियिमका विरोध करनेके संदर्भमें उनका प्रबोधन करें !

१ ई ४.इस अधिनियमके कारण हाहाःकार मचनेसे पूर्व ही राजनेताओंको मुंहतोड उत्तर दीजिए ! :  यदि यह अधिनियम  पारित हो जाए, तो सर्वत्र हाहाःकार मच जाएगा । अतएव हिंदू अपने जनप्रतिनिधियोंपर इस प्रकार दबाव डाल सकते हैं कि, ‘ यदि सांप्रदायिकताके विरोधमेंअधिनियम किया जाएगा, तो आपको बहिष्कृत किया जाएगा ।’ ’ इन राजकर्ताओंके बच्चे पढ रहे हैं, तो उनके पास जाकर इन राजनेताओंके इस कृतिकी निर्भत्सना की जाए । स्त्री तथा पुरुष राजनेताओंके पति अथवा पत्निसे मिलकर उनसे विनती करनी चाहिए कि, ‘आपके सहचरको ऐसे अधम कृत्य करनेसे परावृत्त करें ।

२. हिंदुओंपर अन्याय करनेवाली सच्चर समिति

२ अ. न्यायालयद्वारा हिंदुओंकी भावनाओंका विचार होना आवश्यक !

        सच्चर समितिके समर्थनके विषयमें क्या कहा जा सकता है ? सच्चर समितिके संदर्भमें विभिन्न राज्योंके उच्च न्यायालयमें हिंदुओंका अपेक्षाभंग किया गया है । अब यह प्रकरण सर्वोच्च न्यायालयमें प्रविष्ट किया गया है । अतः यह सोचनेपर विवश होना पड रहा है कि, ‘न्यायालयपर कितना निर्भर रह सकते हैं ?’ म.फि. हुसैनका विषय हो अथवा छत्रपति शिवाजी महाराज  संबंधी पुस्तकका । हिंदुओंकी भावनाओंको कोई महत्व नहीं दिया जाता । हज यात्राके अनुदानको अवैध निश्चित किया गया है, फिर भी वह दिया जाता है । निर्णयके लिए १० वर्षका विलंब क्यों ? एक अधिवक्ता होकर भी मुझे इस प्रश्नका उत्तर प्राप्त नहीं हुआ । न्यायालय भी राजनेताओंके समान अपने आपको बचाना चाहेगा, तो लोंगोंका संविधानसे विश्वास ही उठ जाएगा ।

२ आ. सच्चर समितिके समर्थनके कारण मुसलमान तथा हिंदुओंके बीच शैक्षणिक सुविधाओंके संदर्भमें भिन्नता  

२ आ १. छात्रवृत्ति : जिस मुसलमानकी वार्षिक आय  ढाई लक्ष रुपयोंतक है, उसे गरीब माना जाता है । उसे डेढ लक्षतक छात्रवृत्ति प्राप्त हो सकती है,  किंतु किसी हिंदुकी  वार्षिक आय  १५ सहस्त्रसे अधिक हो ,तो  उसे धनवान माना जानेके कारण उसे कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता । यदि किसीकी वार्षिक आय १५ सहस्त्रसे न्यून है, तो भी उसे शिष्यवृत्ति प्राप्त होगी ही इसकी कोई संभावना नहीं हो सकती । शिक्षाके लिए आवश्यक ४-५ सहस्त्र रुपयोंकी वार्षिक राशि भी सरकारद्वारा प्राप्त नहीं हो सकती ।
२ आ २. अनुदान : जिन पाठशालाओंमें ७५ प्रतिशत अहिंदू होंगे, उन्हें स्वच्छतागृह तथा संगणक पाठशाला  आदि सुविधाओंके लिए ५० लक्ष रुपयोंका अनुदान दिया जाता हैं, तो वनवासी अथवा दलित क्षेत्रकी दलित पाठशालाओंको एक रुपयेका भी अनुदान प्राप्त नहीं हो सकता ।

२ इ. आई.एस.आई.के प्रतिनिधी राजेंद्र सच्चरका समर्थन करनेवाले राजनेता !

        औरंगजेब चला गया किंतु उसके स्थानपर ५४२ नए औरंगजेब आए हैं । वह धर्मपागल था । नए औरंगजेब धर्मपागल नहीं, तो धर्मभ्रष्ट हैं । राजेंद्र सच्चर जिस अंतरराष्ट्रीय परिषदको उपस्थित रहते थे, उसका व्यय पाकिस्तानकी आई.एस.आई.करती थी, यह सिद्ध हेनेपर  भी इस राजेंद्र सच्चरको कसाबकी कोठडीमें रखनेका साहस सरकारमें नहीं हैं । वास्तवमें कसाबके अपराधसे भी उसका अपराध अत्यंत गंभीर स्वरूपका है । कसाबने कुछ सैकडों निरपराध व्यक्तियोंकी हत्या की, राजेंद्र सच्चरने केवल करोडो हिंदू बालकोंको ही नहीं, तो हिंदुओंकी अनेक पीढियोंको विनाशकी खाईमें ढकेल दिया है ।

२ ई. सच्चरके समर्थनकर्ताओंपर प्रतिबंध लगानेके लिए जनआंदोलनकी आवश्यकता !

        सच्चर समितिके ब्यौरेपर निर्णय देते समय मुंबई उच्च न्यायालयने बताया, ‘इन योजनाओंपर वर्तमानमें केवल कुछ सहस्त्र करोड रुपये व्यय हो रहे हैं ।’ ध्यानमें रखें ! न्यायालयकी दृष्टिसे सहस्त्र करोड यह अल्प राशी है ! कुछ सहस्त्रों रुपयोंके लिए इस देशके किसान आत्महत्या करते हैं । कुछ दिनों पश्चात विद्यार्थी भी आत्महत्या करनेके लिए विवश होगे । शरीरपर बम लपेटकर धनु राजीव गांधीकी सभामें गई थी । यदि कल सैकडों विद्यार्थी इसी प्रकार न्यायालयमें आए, तो उसके लिए उत्तरदायी कौन होगा ? जो बात न्यायालयके लिए असंभव है, वह जनता कर सकती है; अतः जनआंदोलनकी आवश्यकता है ।

३. हिंदू आतंकवाद

३ अ. हिंदुओ, अंतर्मुख होनेका प्रयास करें !

         ‘भगवा आतंकवाद’का यह नया विषय २१ वे शतकमें हमारे सामने आया है । ‘इस्लामिक आतंकवाद संबंधी प्रश्नका निराकरण करनेसे पूर्व पेलेस्टाईनके प्रश्नका निराकरण करें ।’ यह भारतकी भूमिका है, किंतु हिंदू आतंकवाद संबंधी  प्रश्नका निराकरण करनेके लिए क्या करना चाहिए, इसका उत्तर किसीके पास भी नहीं हैं । यह भी पता नहीं कि, जिन्हें बंदी बनाना है वे अपराधी हैं कि नहीं ? यदि अपराधी नहीं हैं, तो क्या उनकी सहायता करना हमारा कर्तव्य नहीं है ? साथ ही यदि अपराधी हैं, तो उन्होंने इस प्रकारका कृत्य क्यों किया, इसका विचार करना भी हमारा कर्तव्य नहीं ?

३ आ. हिंदुओ, माना जाए कि, यदि हिंदू आतंकवाद है भी, तो उसे दूर करनेके लिए उसका कारण खोजकर उसके लिए उचित  उपाययोजना करें !

         इस देशके कुछ राजनेताओंने धनराशीको चबाचबाकर खाया , अतः उन्हें मुंहका कर्करोग हुआ है । स्वार्थके लिए देशको लूटनेवाले कलमाडी एवं राजा कारागृहमें गए । डीएमकेके राजा गए, किंतु कांग्रेसकी रानी बच गई । आज नहीं तो कल वह भी जाएगी । उनके अपराधोंकी अपेक्षा मालेगांवका विस्फोट एक साधारण घटना थी , वह अपराध अधिक बडा नहीं है ;इसे सभी स्वीकार करेंगे । । यदि वे अपराधी हैं, तो भी हमें हमारे हिंदू बंधुओंको बहिष्कृत करनेकी अपेक्षा उनकी सहायता करनी चाहिए । उनके परिवारको आधार देना चाहिए । इसका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि, ‘हम आतंकवादका समर्थन कर रहे हैं ।’ यदि हिंदू आतंकवाद होगा ही, तो उसे दूर करने हेतु उसके कारणोंका पता लगाकर उसपर उपाययोजना करें ।

३ इ. राजनीतिक पक्षोंपर निर्भर न रहें !

३ इ १. राजनेता हिंदुओंके राजनीतिक प्रश्नोंके विषयमें क्यों नहीं सोचते ? : जांचतंत्रद्वारा मालेगांव आरोपियोंके कुछ सूत्र (टिप्स) प्रस्तुत किए गए । कश्मिरकी धारा ३७० , सच्चर समिति, मुसलमानोंको आरक्षण, बांग्लादेशी घुसपैठ, पाकका आतंकवाद इस विषयमें प्रक्षुब्ध होकर उसमें संभाषण किया है  ।
        कहते हैं, यह सरकारका प्रमाण है । यदि वास्तवमें यह प्रमाण है, तो हिंदू आतंकवादके विषयमें इतना हो-हल्ला क्यों मचा रहे हैं ? सच्चर तथा संविधानकी  धारा ३७० निरस्त करें । पाकिस्तानपर नियंत्रण रखें । मुसलमानोंकी चापलूसीपर प्रतिबंध लगाइए । एसा होनेपर ही बमविस्फोटपर प्रतिबंध लगाया जा सकता है ! सभी बातोंके राजनीतिक उत्तर दीजिए । आप कश्मिरी आतंकवादकी चर्चा करते हैं । ‘ओसामाजी’ तथा ‘कसाबजी’ के विषयमें दिग्विजय सिंह आदरसे बात करते हैं । केवल हिंदुओंके राजनीतिक प्रश्नोंका ही निराकरण क्यों नहीं करते ? विस्फोटका समर्थन कोई भी नहीं करेगा; किंतु इतनी-सी बातका बतंगड क्यों बनाएं ?
३ इ २. पाकिस्तानियोंको भारतमें आनेके लिए पाबंदी लगानेके पश्चात् ही विस्फोटपर प्रतिबंध लगाया जाएगा! : मालेगांव संदर्भमें मैं न्यायालयके सामने प्रवीण नामक आरोपीके साथ प्रतिभूका युक्तिवाद कर रहा था । उसके कर्नल पुरोहितके साथ संबंध थे । समझौता विस्फोटके पश्चात पुरोहितने खुश होकर आईस्क्रीम खाई थी;  अतः सरकारने यह युक्तिवाद किया कि, ‘उस षडयंत्रमें उसका भी संबंध होना चाहिए ।’ मैंने कहा, ‘‘समझौता विस्फोट हुआ, उस समय मैंने भी आईस्क्रीम खाई थी  । पाकिस्तानी मारे जानेपर मुझे भी खुशी होती है ।’’ न्यायाधीशने पूछा, ‘‘ऐसा न कहिए, क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि, यह विस्फोट बंद होने चाहिए ?’’ मैंने उत्तर दिया, ‘‘मैं भी वही कह रहा हूं । पाकिस्तानियोंको भारतमें आनेकी अनुमती क्यों दी जाती है ? उनके आनेपर प्रतिबंध लगाइए । उनके अपवित्र पैरोंको इस भूमिपर पडनेसे रोका गया, तो ही विस्फोटपर प्रतिबंध लगेगा । किसी हिंदूद्वारा पाकिस्तानमें जाकर विस्फोट होनेकी घटना नहीं घटी, तो भी उन्होंने कसाबको भारतमें विस्फोट करनेके लिए भेजा । यदि ‘समझौता रेल’ आरंभ नहीं होती, तो यहां विस्फोट भी नहीं होता ।’’
         इस पृष्ठभूमिपर वर्तमानमें आतंकवादके संबंधी राजनीतिक पक्षोंकी भूमिका पूरीतरहसे अस्वीकार करनेका समय आया है । राजनीतिक पक्षोंका हिंदु धर्मपर विश्वास नहीं हैं । वे केवल मतोंके लिए ही प्रयास करते हैं; अतः उनपर निर्भर रहना असंभव हो गया है ।

४. वर्तमानस्थितिमें हिंदुत्वकी हानि करनेवाले तथा उपहास करनेवाले  नेताओंकी अपेक्षा धर्मनिष्ठ नेताओंकी ही आवश्यकता !

         जब धर्मनिष्ठ व्यक्ति लडनेके लिए सिद्ध होता है, तब ही युद्ध जीतना संभव होता है । भारतकी परंपरा वीर संन्यासियोंकी हैं । आर्य चाणक्य, त्यागी वीर छत्रपति शिवाजी, हरीहर-बुक्क, आनंदमठ कादंबरी जिनपर लिखी गई, वे बंगालके संन्यासी इत्यादिका  स्थान वर्तमानमें सुखलोलुप, दिखावटी, पाखंडी हिंदुत्वनिष्ठोंने लिया है । हमारे ये नेता प्रतिदिन सुबह आईनेके सामने खडे होकर हिंदुओंको किस प्रकार मूर्ख बनाया; यह कहकर हम सबपर हंसते हैं । कोई अपने बच्चोंके लिए क्रूझपर जन्मदिनका भोजन देता है, तो कोई नब्बे वर्षकी आयु होनेपर भी प्रधानमंत्री बननेकी  इच्छा रखता है । कोई चलचित्रके अभिनेता-अभिनेत्रियोंके साथ नाचनेमें सार्थकता प्रतीत करता है । तो कोई खदानोंकी खुदाई कर अपने कोषागारोंकी पूर्ति करनेमें सार्थकता प्रतीत करता है । उनकी भ्रांतधारणा बन गई है कि, तिरंगा हटाकर भगवा लगाना तथा अपने पापकृत्य उसके नीचे छुपाना । साथ ही वर्तमानके राजनेताओंको हटाकर स्वयं उनके स्थानपर विराजमान होना । उनके इन कृत्योंके कारण हिंदुत्वकी अधिक हानि हुई है तथा उपहास उडाया जा रहा है । हिंदुओंको धर्मनिष्ठ, नीतिमान, पुत्रमोहसे परे तथा भोगवृत्तिका त्याग करनेवाले नेताओंकी आवश्यकता है । धनवानोंके दास  बननेवाले अथवा स्वार्थ तथा विषयवासनाके अधीन हुए नेताओंको हटाना चाहिए ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात
 
Source: http://hindujagruti.org/hn/a/1615.html

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