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Saturday 15 June 2013

यु पी ए -२ के चार साल : यह सरकार झूठी है

यूपीए-2 के चार साल अभूतपूर्व घोटालों की शृंखला और निर्लज्ज भ्रष्टाचार के लिए याद किए जाएंगे. इन चार सालों में देश में महंगाई बढ़ी, विकास रुका, किसानों ने आत्महत्याएं कीं, मज़दूर बेहाल हुए और सरकारी तंत्र को लकवा मार गया, लेकिन दूसरी ओर एकसच यही है कि पूंजीपतियों एवं उद्योगपतियों ने जमकर माल भी कमाया. इतिहास के पन्नों में यह दौर जनांदोलन के लिए दर्ज होगा, क्योंकि यही वह दौर था, जब देश की जनता यूपीए सरकार की करतूतों, घोटालों, भ्रष्टाचार, भूमि अधिग्रहण, काले धन और महिलाओं पर अत्याचार के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरी. अन्ना हज़ारे, रामदेव एवं अरविंद केजरीवाल जैसे कई लोग इन्हीं चार सालों में आशा के प्रतीक बनकर देश के सामने आए. मनमोहन सिंह की सरकार अपना नाम इतिहास में एक विफल सरकार के रूप में दर्ज करा चुकी है. यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी यूपीए-2 के चार साल पूरे होने पर ढंग से जश्‍न भी नहीं मना पाई, क्योंकि जो लोग समझदार थे, उन्होंने इस जश्‍न में शामिल होना उचित ही नहीं समझा.

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    उस सरकार से भ्रष्टाचार ख़त्म करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है, जो स्वयं सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में लिप्त हो. आख़िर में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को देश के निकम्मे विपक्ष का धन्यवाद अदा करना चाहिए, जिसकी अकर्मण्यता की वजह से यूपीए-2 चार सालों तक शासन कर पाया.

वर्ष  2009 में जब चुनाव हुए, तब कांग्रेस पार्टी को यह विश्‍वास ही नहीं था कि वह दोबारा सरकार बना सकेगी, लेकिन चूंकि सबसे ज़्यादा सीटें कांग्रेस को मिलीं, इसलिए यूपीए-2 को सरकार बनानी पड़ी. दरअसल, मनमोहन सिंह जानते थे कि पिछली सरकार में वे देश के लिए कुछ नहीं कर सके और उन्होंने हमेशा गठबंधन की मजबूरियों का बहाना बनाया. इसलिए जब सरकार बनी, तब मनमोहन सिंह हरकत में आए. उन्होंने सौ दिनों के एजेंडे
की घोषणा की और अलग-अलग मंत्रालयों से टारगेट मांगे. संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के ज़रिए सरकार ने यह वादा किया था कि सौ दिनों के अंदर महंगाई पर लगाम लगाई जाएगी, किसानों को राहत मिलेगी, मज़दूरों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत होगी, भ्रष्टाचार ख़त्म होगा और महिला आरक्षण विधेयक भी पास किया जाएगा. इसके साथ-साथ सरकार ने घोषणा की थी कि अगले 5 सालों में झुग्गी-झोपड़ियों को ख़त्म कर दिया जाएगा और ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वालों को हर महीने 3 रुपये किलो की दर से 25 किलो अनाज दिया जाएगा. यूपीए सरकार ने रोज़ाना 20 किलोमीटर और हर साल 700 किलोमीटर सड़क बनाने का भी लक्ष्य रखा था. लेकिन अफसोस! सरकार ने वादाख़िलाफ़ी की. फिलहाल देश में हर रोज़ दो किलोमीटर से भी कम सड़क बन पा रही है. बिजली के क्षेत्र में 5653 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य भी फिलहाल अधूरा ही है. सौ दिन का वादा था, अब तो चार वर्ष बीत गए. यूपीए-2 सरकार एक झूठी सरकार है, जो जनता से झूठ बोलती है, संसद में झूठ बोलती है और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय में भी झूठ बोलने से नहीं हिचकती. इससे भी ज़्यादा शर्मनाक बात तो यह है कि झूठ पकड़े जाने के बाद भी यह सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती.

यूपीए-2 के चार सालों में जनता पिसकर रह गई. सबसे बड़ी समस्या महंगाई की रही, जिससे जनता व्याकुल हो उठी. पिछले चार सालों में अभूतपूर्व महंगाई देखी गई. महंगाई की मार ऐसी कि ग़रीब तो ग़रीब, वह अमीरों को भी चुभने लगी. शर्म की बात तो यह है कि सरकार ने जब-जब यह ऐलान किया कि दो या चार महीने में महंगाई में कमी आ जाएगी, तब-तब महंगाई और बढ़ जाती थी. मनमोहन सिंह फिर वादा करते थे, लेकिन महंगाई फिर बढ़ जाती थी. इतना ही नहीं, ऐसी आर्थिक नीति अपनाई, जिससे महंगाई और भी बढ़ती चली गई. सरकार ने डीजल एवं पेट्रोल से अपना नियंत्रण हटा लिया, उसे बाज़ार के हवाले कर दिया, नतीजतन उनके दाम लगातार बढ़ते ही चले गए. यही नहीं, हर चीज की क़ीमत बढ़ गई. अगर उससे भी कुछ होता नहीं दिखा, तो यूपीए के कुछ मंत्रियों ने बयान देकर महंगाई बढ़ाने का काम किया. इसलिए जब भी लोग मनमोहन सिंह की सरकार को याद करेंगे, तो वे इसे महंगाई बढ़ाने वाली सरकार के नाम से याद करेंगे.

यूपीए-2 विश्‍व की शायद पहली सरकार होगी, जिसने अपनी असफलता पर जश्‍न मनाया. दरअसल, वह अपनी विफलताओं को ही सफलता समझती है और आंकड़ों की चालबाजी से लोगों को भ्रमित करती रहती है. एक उदाहरण देता हूं. 2-जी घोटाले में फंसने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिर से नीलामी के आदेश दिए. सरकार ने नीलामी से 400 बिलियन रुपये का टारगेट बनाया, लेकिन जब नीलामी हुई, तो सरकार अपना ही टारगेट पूरा नहीं कर पाई. हैरानी इस बात से हुई कि टेलीकाम मिनिस्टर कपिल सिब्बल ने कहा कि 2-जी के बारे में जो बातें लोग कह रहे थे, वे गलत थीं और वह सही निकले. अब सवाल यह उठता है कि अगर वह सही थे, तो 400 बिलियन रुपये का टारगेट क्यों रखा गया? चार सालों की उपलब्धियां गिनाते वक्त प्रधानमंत्री ने देश में मूलभूत सेवाओं (इंफ्रास्ट्रक्चर) के विकास के बारे में कुछ नहीं बताया. ऐसा इसलिए, क्योंकि इस मामले में यूपीए-2 का रिकॉर्ड बेहद शर्मनाक है. सड़कों की हालत जर्जर हो रही है और पीने का पानी उपलब्ध कराने में सरकार की कोई खास उपलब्धि नहीं है. बिजली के उत्पादन में भी मनमोहन सिंह की सरकार फिसड्डी रही है. सरकार द्वारा संचालित थर्मल पावर प्लांट पिछले चार सालों में कोयला उपलब्ध न होने का रोना रोता रहा. मनमोहन सिंह भी हर जगह अपने भाषणों में कोयले की कमी का गीत गाते रहे, जबकि उन्होंने ही अपनी कलम से 52 लाख करोड़ रुपये का कोयला लुटवा दिया. स़िर्फ लुटवाया ही नहीं, बल्कि पकड़े भी गए. आज कोयला घोटाले के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के क्रियाकलापों पर जो टिप्पणी की है, वह सचमुच शर्मनाक है. इसमें कोई शक नहीं कि मनमोहन सिंह की सरकार ने पिछले चार सालों में लोगों को स़िर्फ धोखा देने का काम किया है.

चार साल की यूपीए-2 सरकार के बारे में प्रधानमंत्री ने इनक्लूसिव ग्रोथ (समावेशी विकास) का ढोल पीटा. वैसे यह कहना पड़ेगा कि मनमोहन सिंह ने इनक्लूसिव ग्रोथ का नाम लेकर एक बार फिर लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश की. उन्होंने इन्क्लूसिव ग्रोथ की बात कहकर यह दावा किया कि भारत के ग्रामीण इलाकों में विकास और खपत 3 फ़ीसद की दर से बढ़े. प्रधानमंत्री ने एक बार फिर लोगों को बरगलाने की कोशिश की. ग्रामीण विकास दर राष्ट्रीय विकास दर से कम है. अगर स़िर्फ 3 फ़ीसद की दर से ग्रामीण विकास हो रहा है, तो इसका मतलब यही है कि देश के 70 फ़ीसद इलाके पिछड़ रहे हैं और शहरों का विकास ज़्यादा हो रहा है. शहर और गांव के बीच की खाई बढ़ रही है. जब भी शहर और गांव के बीच खाई बढ़ती है, तो देश में असंतोष बढ़ता है. यही वजह है कि देश में नक्सलियों की पकड़ मजबूत हो रही है. यह देश के सामने सबसे बड़ा ख़तरा है, लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान ही नहीं है. अब जहां तक बात इन्क्लूसिव ग्रोथ की है, तो इसका मतलब यही होता है कि विकास का वह रास्ता, जिसमें ग़रीबों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं एवं सभी वंचित वर्गों को विकास में हिस्सेदारी और लाभ मिल सके.

अब जरा वंचित वर्गों के विकास और सशक्तिकरण पर यूपीए-2 की नीतियों को परखते हैं. उत्तर प्रदेश में जब विधानसभा चुनाव हुए, तो उससे पहले यूपीए-2 ने रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट लागू करने का शिगूफा छोड़ा, लेकिन देश के मुसलमानों ने कांग्रेस की इस चाल को भांप लिया. मुसलमानों को नौकरियों में आरक्षण के नाम पर यूपीए ने खुलेआम धोखा दिया. महिलाओं के आरक्षण का बिल आज भी लटका हुआ है. आश्‍चर्य की बात तो यह है कि दलितों को प्रमोशन में आरक्षण देने के नाम पर यूपीए ने उसका भी राजनीतिकरण कर दिया. ग़रीबों एवं किसानों को कोई राहत नहीं मिली. भूमि अधिग्रहण बिल भी लटका हुआ है. जिस सरकार में किसानों, मज़दूरों, पिछड़ों, ग़रीबों, अल्पसंख्यकों एवं आदिवासियों को कोई राहत नहीं, वह सरकार अगर इन्क्लूसिव ग्रोथ के बारे में कुछ कहती है, तो यह सरासर देश के साथ एक मज़ाक़ है.

यह सचमुच हैरानी की बात है कि मनमोहन सिंह यूपीए-2 को एक सफल सरकार मानते हैं. जबकि सच्चाई इसके उलट है. देश में गंभीर आर्थिक संकट है, अर्थव्यवस्था की रफ्तार लगातार घटती जा रही है और सरकार की नीतियां एक के बाद एक नाकाम हो रही हैं. मनमोहन सिंह की सरकार जो भी वादे करती है, उन्हें वह पूरा नहीं कर पाती. एक उदाहरण देता हूं. यह बात 2011 की है. बजट पेश करने से पहले मनमोहन सिंह ने आश्‍वासन दिया कि सरकार ऐसी नीतियों पर काम कर रही है, जिनसे देश की आर्थिक स्थिति खासी मज़बूत हो जाएगी. उन्होंने कहा कि सरकार 2011-12 में 9 प्रतिशत विकास दर हासिल कर लेगी. हालांकि कुछ समय बीतते ही सरकार को समझ में आ गया कि 9 प्रतिशत विकास दर मुमकिन नहीं है, तो उसने इस टारगेट को घटाकर 8.4 प्रतिशत कर दिया. इसके बाद एक बार फिर सरकार को लगा कि यह करना भी मुमकिन नहीं है, तो विकास दर का टारगेट घटाकर 6.9 प्रतिशत तय किया गया. कहने का मतलब यह है कि आर्थिक क्षेत्र में सरकार अपनी नीतियों और उसके परिणाम को लेकर न स़िर्फ भ्रमित रही, बल्कि वह अपनी गलतियां छुपाने के लिए आंकड़ों के साथ कलाबाजी भी करती रही. इस बार प्रधानमंत्री और कांग्रेस के नेता जिन आंकड़ों को दिखाकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, वे महज एक छलावा हैं, क्योंकि इन चार सालों में किसी भी प्राथमिक क्षेत्र में कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं हुई. मनमोहन सिंह एक अर्थशास्त्री हैं, इसलिए उन्हें यह समझना पड़ेगा कि आंकड़ों की कलाबाजी से सेमिनारों में बहस को तो जीता जा सकता है, लेकिन उससे देश नहीं चलाया जा सकता. एक सफल सरकार का मापदंड स़िर्फ यह है कि वह कम से कम अपने द्वारा तय किए गए लक्ष्यों को पूरा करे. जो सरकार अपने ही लक्ष्यों को पूरा नहीं पाई, उसे एक सफल सरकार कैसे माना जा सकता है.

मनमोहन सिंह देश या शायद विश्‍व के ऐसे अकेले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने सबसे ज़्यादा विदेशी दौरे किए. विदेशी दौरों के मामले में वे रिकॉर्ड बना चुके हैं. शायद प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें इस बात का विश्‍वास था कि वे अपने आपको एक विश्‍वस्तरीय नेता के रूप में स्थापित कर सकेंगे. खैर, पिछले नौ सालों में ऐसा बिल्कुल नहीं हो पाया. दरअसल, मनमोहन सिंह जिन बड़े देशों में गए, वहां से उन्होंने कुछ भी हासिल नहीं किया और जिन छोटे देशों में गए, वहां वे कुछ न कुछ गंवाकर ही लौटे. बावजूद इसके वे चार सालों की विदेश नीति को सफल मानते हैं. उन्होंने कहा कि भारत के रिश्ते आज अमेरिका, रूस एवं यूरोप के देशों के साथ पहले से ज़्यादा गहरे हो गए हैं, लेकिन वे बड़ी सफाई के साथ इस बात को छुपा गए कि पड़ोसी देशों के साथ भारत के रिश्ते पहले से ज़्यादा खराब हो गए हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं श्रीलंका, यहां तक कि नेपाल के साथ भी हमारे रिश्तों में खटास आई है. पाकिस्तान को यूपीए सही ढंग से हैंडिल नहीं कर सका. मुंबई धमाकों में शामिल आतंकवादियों को पकड़ने या भारत लाने में यूपीए विफल रहा. यह मसला ऐसा था, जिसके जरिए पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेनकाब किया जा सकता था, लेकिन यह मौक़ा गंवा दिया गया. मनमोहन सिंह से सबसे बड़ी गलती तब हुई, जब उन्होंने बलूचिस्तान के मामले को संयुक्त बयान में शामिल करा दिया. यूपीए सरकार की गलतियों का ही यह नतीजा है कि पाकिस्तान हमारे सैनिकों के सिर धड़ से अलग करने और सरबजीत की निर्मम हत्या की जुर्रत कर बैठता है. और तो और, अब तो बांग्लादेश, नेपाल एवं श्रीलंका भी आंखें दिखाने लगे हैं. सबसे शर्मनाक तो मालदीव का मामला है, जहां भारत का अब कोई असर ही नहीं है. हालांकि विदेश नीति पर लोगों के बीच चर्चा नहीं होती, लेकिन सच्चाई तो यही है कि यूपीए के तहत भारत की विदेश नीति सबसे ज़्यादा दिशाविहीन रही.

यूपीए सरकार पूरी तरह बड़े औद्योगिक घरानों और पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली बनी रही, चाहे वह गैस एवं पेट्रोल की क़ीमतें हों, टेलीकाम स्पेक्ट्रम का आवंटन हो, खनन, वित्तीय सेक्टर, रिटेल सेक्टर या फिर विदेशी शिक्षा संस्थान हों. सरकार की हर नीति का फ़ायदा देश के बड़े उद्योगपतियों और विदेशी कंपनियों को ही पहुंचा. पिछले चार सालों से नेताओं, उद्योगपतियों एवं दलालों के गठजोड़ जिस तरह से देश में फल-फूल रहे हैं, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया. सरकार तो बजट के जरिए भी कॉरपोरेट जगत को मदद पहुंचाने में कोई शर्म महसूस नहीं करती. हर साल लाखों करोड़ रुपये की छूट यूपीए ने पूंजीपतियों को दी. इस साल के बजट के मुताबिक, कॉरपोरेट जगत को मिलने वाली छूट 460972 करोड़ रुपये की है. इसमें 88263 करोड़ रुपये कॉरपोरेट टैक्स के रूप में माफ़ कर दिए गए, जबकि एक्साइज ड्यूटी के रूप में 198291 करोड़ रुपये और कस्टम ड्यूटी के रूप में 174418 करोड़ रुपये की छूट दी गई.

यूपीए सरकार का कोई भी विश्‍लेषण भ्रष्टाचार की चर्चा के बगैर नहीं किया जा सकता. यह इतिहास की पहली सरकार है, जिसका कोई सिटिंग मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गया हो. जब सरकार बनी थी, तब मनमोहन सिंह को लोग एक ईमानदार आदमी मानते थे, लेकिन कोयला घोटाले में जिस तरह से खुलासा हुआ, उससे यूपीए ने यही हासिल किया कि अब लोगों की नज़रों में मनमोहन सिंह ईमानदार नहीं रहे. भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का काम सरकार का है, लेकिन यह सरकार तो भ्रष्टाचार से लड़ने वाले सामाजिक नेताओं को ही अपना दुश्मन मानती है. वैसे भी उस सरकार से भ्रष्टाचार ख़त्म करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है, जो स्वयं सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में लिप्त हो. आख़िर में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को देश के निकम्मे विपक्ष का धन्यवाद अदा करना चाहिए, जिसकी अकर्मण्यता की वजह से यूपीए-2 चार सालों तक शासन कर पाया.

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यूपीए-2 के चार साल अभूतपूर्व घोटालों की शृंखला और निर्लज्ज भ्रष्टाचार के लिए याद किए जाएंगे. इन चार सालों में देश में महंगाई बढ़ी, विकास रुका, किसानों ने आत्महत्याएं कीं, मज़दूर बेहाल हुए और सरकारी तंत्र को लकवा मार गया, लेकिन दूसरी ओर एकसच यही है कि पूंजीपतियों एवं उद्योगपतियों ने जमकर माल भी कमाया. इतिहास के पन्नों में यह दौर जनांदोलन के लिए दर्ज होगा, क्योंकि यही वह दौर था, जब देश की जनता यूपीए सरकार की करतूतों, घोटालों, भ्रष्टाचार, भूमि अधिग्रहण, काले धन और महिलाओं पर अत्याचार के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरी. अन्ना हज़ारे, रामदेव एवं अरविंद केजरीवाल जैसे कई लोग इन्हीं चार सालों में आशा के प्रतीक बनकर देश के सामने आए. मनमोहन सिंह की सरकार अपना नाम इतिहास में एक विफल सरकार के रूप में दर्ज करा चुकी है. यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी यूपीए-2 के चार साल पूरे होने पर ढंग से जश्‍न भी नहीं मना पाई, क्योंकि जो लोग समझदार थे, उन्होंने इस जश्‍न में शामिल होना उचित ही नहीं समझा. 
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उस सरकार से भ्रष्टाचार ख़त्म करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है, जो स्वयं सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में लिप्त हो. आख़िर में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को देश के निकम्मे विपक्ष का धन्यवाद अदा करना चाहिए, जिसकी अकर्मण्यता की वजह से यूपीए-2 चार सालों तक शासन कर पाया.
वर्ष  2009 में जब चुनाव हुए, तब कांग्रेस पार्टी को यह विश्‍वास ही नहीं था कि वह दोबारा सरकार बना सकेगी, लेकिन चूंकि सबसे ज़्यादा सीटें कांग्रेस को मिलीं, इसलिए यूपीए-2 को सरकार बनानी पड़ी. दरअसल, मनमोहन सिंह जानते थे कि पिछली सरकार में वे देश के लिए कुछ नहीं कर सके और उन्होंने हमेशा गठबंधन की मजबूरियों का बहाना बनाया. इसलिए जब सरकार बनी, तब मनमोहन सिंह हरकत में आए. उन्होंने सौ दिनों के एजेंडे की घोषणा की और अलग-अलग मंत्रालयों से टारगेट मांगे. संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के ज़रिए सरकार ने यह वादा किया था कि सौ दिनों के अंदर महंगाई पर लगाम लगाई जाएगी, किसानों को राहत मिलेगी, मज़दूरों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत होगी, भ्रष्टाचार ख़त्म होगा और महिला आरक्षण विधेयक भी पास किया जाएगा. इसके साथ-साथ सरकार ने घोषणा की थी कि अगले 5 सालों में झुग्गी-झोपड़ियों को ख़त्म कर दिया जाएगा और ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वालों को हर महीने 3 रुपये किलो की दर से 25 किलो अनाज दिया जाएगा. यूपीए सरकार ने रोज़ाना 20 किलोमीटर और हर साल 700 किलोमीटर सड़क बनाने का भी लक्ष्य रखा था. लेकिन अफसोस! सरकार ने वादाख़िलाफ़ी की. फिलहाल देश में हर रोज़ दो किलोमीटर से भी कम सड़क बन पा रही है. बिजली के क्षेत्र में 5653 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य भी फिलहाल अधूरा ही है. सौ दिन का वादा था, अब तो चार वर्ष बीत गए. यूपीए-2 सरकार एक झूठी सरकार है, जो जनता से झूठ बोलती है, संसद में झूठ बोलती है और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय में भी झूठ बोलने से नहीं हिचकती. इससे भी ज़्यादा शर्मनाक बात तो यह है कि झूठ पकड़े जाने के बाद भी यह सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती.
यूपीए-2 के चार सालों में जनता पिसकर रह गई. सबसे बड़ी समस्या महंगाई की रही, जिससे जनता व्याकुल हो उठी. पिछले चार सालों में अभूतपूर्व महंगाई देखी गई. महंगाई की मार ऐसी कि ग़रीब तो ग़रीब, वह अमीरों को भी चुभने लगी. शर्म की बात तो यह है कि सरकार ने जब-जब यह ऐलान किया कि दो या चार महीने में महंगाई में कमी आ जाएगी, तब-तब महंगाई और बढ़ जाती थी. मनमोहन सिंह फिर वादा करते थे, लेकिन महंगाई फिर बढ़ जाती थी. इतना ही नहीं, ऐसी आर्थिक नीति अपनाई, जिससे महंगाई और भी बढ़ती चली गई. सरकार ने डीजल एवं पेट्रोल से अपना नियंत्रण हटा लिया, उसे बाज़ार के हवाले कर दिया, नतीजतन उनके दाम लगातार बढ़ते ही चले गए. यही नहीं, हर चीज की क़ीमत बढ़ गई. अगर उससे भी कुछ होता नहीं दिखा, तो यूपीए के कुछ मंत्रियों ने बयान देकर महंगाई बढ़ाने का काम किया. इसलिए जब भी लोग मनमोहन सिंह की सरकार को याद करेंगे, तो वे इसे महंगाई बढ़ाने वाली सरकार के नाम से याद करेंगे.
यूपीए-2 विश्‍व की शायद पहली सरकार होगी, जिसने अपनी असफलता पर जश्‍न मनाया. दरअसल, वह अपनी विफलताओं को ही सफलता समझती है और आंकड़ों की चालबाजी से लोगों को भ्रमित करती रहती है. एक उदाहरण देता हूं. 2-जी घोटाले में फंसने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिर से नीलामी के आदेश दिए. सरकार ने नीलामी से 400 बिलियन रुपये का टारगेट बनाया, लेकिन जब नीलामी हुई, तो सरकार अपना ही टारगेट पूरा नहीं कर पाई. हैरानी इस बात से हुई कि टेलीकाम मिनिस्टर कपिल सिब्बल ने कहा कि 2-जी के बारे में जो बातें लोग कह रहे थे, वे गलत थीं और वह सही निकले. अब सवाल यह उठता है कि अगर वह सही थे, तो 400 बिलियन रुपये का टारगेट क्यों रखा गया? चार सालों की उपलब्धियां गिनाते वक्त प्रधानमंत्री ने देश में मूलभूत सेवाओं (इंफ्रास्ट्रक्चर) के विकास के बारे में कुछ नहीं बताया. ऐसा इसलिए, क्योंकि इस मामले में यूपीए-2 का रिकॉर्ड बेहद शर्मनाक है. सड़कों की हालत जर्जर हो रही है और पीने का पानी उपलब्ध कराने में सरकार की कोई खास उपलब्धि नहीं है. बिजली के उत्पादन में भी मनमोहन सिंह की सरकार फिसड्डी रही है. सरकार द्वारा संचालित थर्मल पावर प्लांट पिछले चार सालों में कोयला उपलब्ध न होने का रोना रोता रहा. मनमोहन सिंह भी हर जगह अपने भाषणों में कोयले की कमी का गीत गाते रहे, जबकि उन्होंने ही अपनी कलम से 52 लाख करोड़ रुपये का कोयला लुटवा दिया. स़िर्फ लुटवाया ही नहीं, बल्कि पकड़े भी गए. आज कोयला घोटाले के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के क्रियाकलापों पर जो टिप्पणी की है, वह सचमुच शर्मनाक है. इसमें कोई शक नहीं कि मनमोहन सिंह की सरकार ने पिछले चार सालों में लोगों को स़िर्फ धोखा देने का काम किया है.
चार साल की यूपीए-2 सरकार के बारे में प्रधानमंत्री ने इनक्लूसिव ग्रोथ (समावेशी विकास) का ढोल पीटा. वैसे यह कहना पड़ेगा कि मनमोहन सिंह ने इनक्लूसिव ग्रोथ का नाम लेकर एक बार फिर लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश की. उन्होंने इन्क्लूसिव ग्रोथ की बात कहकर यह दावा किया कि भारत के ग्रामीण इलाकों में विकास और खपत 3 फ़ीसद की दर से बढ़े. प्रधानमंत्री ने एक बार फिर लोगों को बरगलाने की कोशिश की. ग्रामीण विकास दर राष्ट्रीय विकास दर से कम है. अगर स़िर्फ 3 फ़ीसद की दर से ग्रामीण विकास हो रहा है, तो इसका मतलब यही है कि देश के 70 फ़ीसद इलाके पिछड़ रहे हैं और शहरों का विकास ज़्यादा हो रहा है. शहर और गांव के बीच की खाई बढ़ रही है. जब भी शहर और गांव के बीच खाई बढ़ती है, तो देश में असंतोष बढ़ता है. यही वजह है कि देश में नक्सलियों की पकड़ मजबूत हो रही है. यह देश के सामने सबसे बड़ा ख़तरा है, लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान ही नहीं है. अब जहां तक बात इन्क्लूसिव ग्रोथ की है, तो इसका मतलब यही होता है कि विकास का वह रास्ता, जिसमें ग़रीबों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं एवं सभी वंचित वर्गों को विकास में हिस्सेदारी और लाभ मिल सके.
अब जरा वंचित वर्गों के विकास और सशक्तिकरण पर यूपीए-2 की नीतियों को परखते हैं. उत्तर प्रदेश में जब विधानसभा चुनाव हुए, तो उससे पहले यूपीए-2 ने रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट लागू करने का शिगूफा छोड़ा, लेकिन देश के मुसलमानों ने कांग्रेस की इस चाल को भांप लिया. मुसलमानों को नौकरियों में आरक्षण के नाम पर यूपीए ने खुलेआम धोखा दिया. महिलाओं के आरक्षण का बिल आज भी लटका हुआ है. आश्‍चर्य की बात तो यह है कि दलितों को प्रमोशन में आरक्षण देने के नाम पर यूपीए ने उसका भी राजनीतिकरण कर दिया. ग़रीबों एवं किसानों को कोई राहत नहीं मिली. भूमि अधिग्रहण बिल भी लटका हुआ है. जिस सरकार में किसानों, मज़दूरों, पिछड़ों, ग़रीबों, अल्पसंख्यकों एवं आदिवासियों को कोई राहत नहीं, वह सरकार अगर इन्क्लूसिव ग्रोथ के बारे में कुछ कहती है, तो यह सरासर देश के साथ एक मज़ाक़ है.
यह सचमुच हैरानी की बात है कि मनमोहन सिंह यूपीए-2 को एक सफल सरकार मानते हैं. जबकि सच्चाई इसके उलट है. देश में गंभीर आर्थिक संकट है, अर्थव्यवस्था की रफ्तार लगातार घटती जा रही है और सरकार की नीतियां एक के बाद एक नाकाम हो रही हैं. मनमोहन सिंह की सरकार जो भी वादे करती है, उन्हें वह पूरा नहीं कर पाती. एक उदाहरण देता हूं. यह बात 2011 की है. बजट पेश करने से पहले मनमोहन सिंह ने आश्‍वासन दिया कि सरकार ऐसी नीतियों पर काम कर रही है, जिनसे देश की आर्थिक स्थिति खासी मज़बूत हो जाएगी. उन्होंने कहा कि सरकार 2011-12 में 9 प्रतिशत विकास दर हासिल कर लेगी. हालांकि कुछ समय बीतते ही सरकार को समझ में आ गया कि 9 प्रतिशत विकास दर मुमकिन नहीं है, तो उसने इस टारगेट को घटाकर 8.4 प्रतिशत कर दिया. इसके बाद एक बार फिर सरकार को लगा कि यह करना भी मुमकिन नहीं है, तो विकास दर का टारगेट घटाकर 6.9 प्रतिशत तय किया गया. कहने का मतलब यह है कि आर्थिक क्षेत्र में सरकार अपनी नीतियों और उसके परिणाम को लेकर न स़िर्फ भ्रमित रही, बल्कि वह अपनी गलतियां छुपाने के लिए आंकड़ों के साथ कलाबाजी भी करती रही. इस बार प्रधानमंत्री और कांग्रेस के नेता जिन आंकड़ों को दिखाकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, वे महज एक छलावा हैं, क्योंकि इन चार सालों में किसी भी प्राथमिक क्षेत्र में कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं हुई. मनमोहन सिंह एक अर्थशास्त्री हैं, इसलिए उन्हें यह समझना पड़ेगा कि आंकड़ों की कलाबाजी से सेमिनारों में बहस को तो जीता जा सकता है, लेकिन उससे देश नहीं चलाया जा सकता. एक सफल सरकार का मापदंड स़िर्फ यह है कि वह कम से कम अपने द्वारा तय किए गए लक्ष्यों को पूरा करे. जो सरकार अपने ही लक्ष्यों को पूरा नहीं पाई, उसे एक सफल सरकार कैसे माना जा सकता है.
मनमोहन सिंह देश या शायद विश्‍व के ऐसे अकेले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने सबसे ज़्यादा विदेशी दौरे किए. विदेशी दौरों के मामले में वे रिकॉर्ड बना चुके हैं. शायद प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें इस बात का विश्‍वास था कि वे अपने आपको एक विश्‍वस्तरीय नेता के रूप में स्थापित कर सकेंगे. खैर, पिछले नौ सालों में ऐसा बिल्कुल नहीं हो पाया. दरअसल, मनमोहन सिंह जिन बड़े देशों में गए, वहां से उन्होंने कुछ भी हासिल नहीं किया और जिन छोटे देशों में गए, वहां वे कुछ न कुछ गंवाकर ही लौटे. बावजूद इसके वे चार सालों की विदेश नीति को सफल मानते हैं. उन्होंने कहा कि भारत के रिश्ते आज अमेरिका, रूस एवं यूरोप के देशों के साथ पहले से ज़्यादा गहरे हो गए हैं, लेकिन वे बड़ी सफाई के साथ इस बात को छुपा गए कि पड़ोसी देशों के साथ भारत के रिश्ते पहले से ज़्यादा खराब हो गए हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं श्रीलंका, यहां तक कि नेपाल के साथ भी हमारे रिश्तों में खटास आई है. पाकिस्तान को यूपीए सही ढंग से हैंडिल नहीं कर सका. मुंबई धमाकों में शामिल आतंकवादियों को पकड़ने या भारत लाने में यूपीए विफल रहा. यह मसला ऐसा था, जिसके जरिए पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेनकाब किया जा सकता था, लेकिन यह मौक़ा गंवा दिया गया. मनमोहन सिंह से सबसे बड़ी गलती तब हुई, जब उन्होंने बलूचिस्तान के मामले को संयुक्त बयान में शामिल करा दिया. यूपीए सरकार की गलतियों का ही यह नतीजा है कि पाकिस्तान हमारे सैनिकों के सिर धड़ से अलग करने और सरबजीत की निर्मम हत्या की जुर्रत कर बैठता है. और तो और, अब तो बांग्लादेश, नेपाल एवं श्रीलंका भी आंखें दिखाने लगे हैं. सबसे शर्मनाक तो मालदीव का मामला है, जहां भारत का अब कोई असर ही नहीं है. हालांकि विदेश नीति पर लोगों के बीच चर्चा नहीं होती, लेकिन सच्चाई तो यही है कि यूपीए के तहत भारत की विदेश नीति सबसे ज़्यादा दिशाविहीन रही.
यूपीए सरकार पूरी तरह बड़े औद्योगिक घरानों और पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली बनी रही, चाहे वह गैस एवं पेट्रोल की क़ीमतें हों, टेलीकाम स्पेक्ट्रम का आवंटन हो, खनन, वित्तीय सेक्टर, रिटेल सेक्टर या फिर विदेशी शिक्षा संस्थान हों. सरकार की हर नीति का फ़ायदा देश के बड़े उद्योगपतियों और विदेशी कंपनियों को ही पहुंचा. पिछले चार सालों से नेताओं, उद्योगपतियों एवं दलालों के गठजोड़ जिस तरह से देश में फल-फूल रहे हैं, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया. सरकार तो बजट के जरिए भी कॉरपोरेट जगत को मदद पहुंचाने में कोई शर्म महसूस नहीं करती. हर साल लाखों करोड़ रुपये की छूट यूपीए ने पूंजीपतियों को दी. इस साल के बजट के मुताबिक, कॉरपोरेट जगत को मिलने वाली छूट 460972 करोड़ रुपये की है. इसमें 88263 करोड़ रुपये कॉरपोरेट टैक्स के रूप में माफ़ कर दिए गए, जबकि एक्साइज ड्यूटी के रूप में 198291 करोड़ रुपये और कस्टम ड्यूटी के रूप में 174418 करोड़ रुपये की छूट दी गई.
यूपीए सरकार का कोई भी विश्‍लेषण भ्रष्टाचार की चर्चा के बगैर नहीं किया जा सकता. यह इतिहास की पहली सरकार है, जिसका कोई सिटिंग मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गया हो. जब सरकार बनी थी, तब मनमोहन सिंह को लोग एक ईमानदार आदमी मानते थे, लेकिन कोयला घोटाले में जिस तरह से खुलासा हुआ, उससे यूपीए ने यही हासिल किया कि अब लोगों की नज़रों में मनमोहन सिंह ईमानदार नहीं रहे. भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का काम सरकार का है, लेकिन यह सरकार तो भ्रष्टाचार से लड़ने वाले सामाजिक नेताओं को ही अपना दुश्मन मानती है. वैसे भी उस सरकार से भ्रष्टाचार ख़त्म करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है, जो स्वयं सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में लिप्त हो. आख़िर में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को देश के निकम्मे विपक्ष का धन्यवाद अदा करना चाहिए, जिसकी अकर्मण्यता की वजह से यूपीए-2 चार सालों तक शासन कर पाया.
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यूपीए-2 के चार साल अभूतपूर्व घोटालों की शृंखला और निर्लज्ज भ्रष्टाचार के लिए याद किए जाएंगे. इन चार सालों में देश में महंगाई बढ़ी, विकास रुका, किसानों ने आत्महत्याएं कीं, मज़दूर बेहाल हुए और सरकारी तंत्र को लकवा मार गया, लेकिन दूसरी ओर एकसच यही है कि पूंजीपतियों एवं उद्योगपतियों ने जमकर माल भी कमाया. इतिहास के पन्नों में यह दौर जनांदोलन के लिए दर्ज होगा, क्योंकि यही वह दौर था, जब देश की जनता यूपीए सरकार की करतूतों, घोटालों, भ्रष्टाचार, भूमि अधिग्रहण, काले धन और महिलाओं पर अत्याचार के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरी. अन्ना हज़ारे, रामदेव एवं अरविंद केजरीवाल जैसे कई लोग इन्हीं चार सालों में आशा के प्रतीक बनकर देश के सामने आए. मनमोहन सिंह की सरकार अपना नाम इतिहास में एक विफल सरकार के रूप में दर्ज करा चुकी है. यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी यूपीए-2 के चार साल पूरे होने पर ढंग से जश्‍न भी नहीं मना पाई, क्योंकि जो लोग समझदार थे, उन्होंने इस जश्‍न में शामिल होना उचित ही नहीं समझा. 
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उस सरकार से भ्रष्टाचार ख़त्म करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है, जो स्वयं सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में लिप्त हो. आख़िर में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को देश के निकम्मे विपक्ष का धन्यवाद अदा करना चाहिए, जिसकी अकर्मण्यता की वजह से यूपीए-2 चार सालों तक शासन कर पाया.
वर्ष  2009 में जब चुनाव हुए, तब कांग्रेस पार्टी को यह विश्‍वास ही नहीं था कि वह दोबारा सरकार बना सकेगी, लेकिन चूंकि सबसे ज़्यादा सीटें कांग्रेस को मिलीं, इसलिए यूपीए-2 को सरकार बनानी पड़ी. दरअसल, मनमोहन सिंह जानते थे कि पिछली सरकार में वे देश के लिए कुछ नहीं कर सके और उन्होंने हमेशा गठबंधन की मजबूरियों का बहाना बनाया. इसलिए जब सरकार बनी, तब मनमोहन सिंह हरकत में आए. उन्होंने सौ दिनों के एजेंडे की घोषणा की और अलग-अलग मंत्रालयों से टारगेट मांगे. संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के ज़रिए सरकार ने यह वादा किया था कि सौ दिनों के अंदर महंगाई पर लगाम लगाई जाएगी, किसानों को राहत मिलेगी, मज़दूरों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत होगी, भ्रष्टाचार ख़त्म होगा और महिला आरक्षण विधेयक भी पास किया जाएगा. इसके साथ-साथ सरकार ने घोषणा की थी कि अगले 5 सालों में झुग्गी-झोपड़ियों को ख़त्म कर दिया जाएगा और ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वालों को हर महीने 3 रुपये किलो की दर से 25 किलो अनाज दिया जाएगा. यूपीए सरकार ने रोज़ाना 20 किलोमीटर और हर साल 700 किलोमीटर सड़क बनाने का भी लक्ष्य रखा था. लेकिन अफसोस! सरकार ने वादाख़िलाफ़ी की. फिलहाल देश में हर रोज़ दो किलोमीटर से भी कम सड़क बन पा रही है. बिजली के क्षेत्र में 5653 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य भी फिलहाल अधूरा ही है. सौ दिन का वादा था, अब तो चार वर्ष बीत गए. यूपीए-2 सरकार एक झूठी सरकार है, जो जनता से झूठ बोलती है, संसद में झूठ बोलती है और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय में भी झूठ बोलने से नहीं हिचकती. इससे भी ज़्यादा शर्मनाक बात तो यह है कि झूठ पकड़े जाने के बाद भी यह सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती.
यूपीए-2 के चार सालों में जनता पिसकर रह गई. सबसे बड़ी समस्या महंगाई की रही, जिससे जनता व्याकुल हो उठी. पिछले चार सालों में अभूतपूर्व महंगाई देखी गई. महंगाई की मार ऐसी कि ग़रीब तो ग़रीब, वह अमीरों को भी चुभने लगी. शर्म की बात तो यह है कि सरकार ने जब-जब यह ऐलान किया कि दो या चार महीने में महंगाई में कमी आ जाएगी, तब-तब महंगाई और बढ़ जाती थी. मनमोहन सिंह फिर वादा करते थे, लेकिन महंगाई फिर बढ़ जाती थी. इतना ही नहीं, ऐसी आर्थिक नीति अपनाई, जिससे महंगाई और भी बढ़ती चली गई. सरकार ने डीजल एवं पेट्रोल से अपना नियंत्रण हटा लिया, उसे बाज़ार के हवाले कर दिया, नतीजतन उनके दाम लगातार बढ़ते ही चले गए. यही नहीं, हर चीज की क़ीमत बढ़ गई. अगर उससे भी कुछ होता नहीं दिखा, तो यूपीए के कुछ मंत्रियों ने बयान देकर महंगाई बढ़ाने का काम किया. इसलिए जब भी लोग मनमोहन सिंह की सरकार को याद करेंगे, तो वे इसे महंगाई बढ़ाने वाली सरकार के नाम से याद करेंगे.
यूपीए-2 विश्‍व की शायद पहली सरकार होगी, जिसने अपनी असफलता पर जश्‍न मनाया. दरअसल, वह अपनी विफलताओं को ही सफलता समझती है और आंकड़ों की चालबाजी से लोगों को भ्रमित करती रहती है. एक उदाहरण देता हूं. 2-जी घोटाले में फंसने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिर से नीलामी के आदेश दिए. सरकार ने नीलामी से 400 बिलियन रुपये का टारगेट बनाया, लेकिन जब नीलामी हुई, तो सरकार अपना ही टारगेट पूरा नहीं कर पाई. हैरानी इस बात से हुई कि टेलीकाम मिनिस्टर कपिल सिब्बल ने कहा कि 2-जी के बारे में जो बातें लोग कह रहे थे, वे गलत थीं और वह सही निकले. अब सवाल यह उठता है कि अगर वह सही थे, तो 400 बिलियन रुपये का टारगेट क्यों रखा गया? चार सालों की उपलब्धियां गिनाते वक्त प्रधानमंत्री ने देश में मूलभूत सेवाओं (इंफ्रास्ट्रक्चर) के विकास के बारे में कुछ नहीं बताया. ऐसा इसलिए, क्योंकि इस मामले में यूपीए-2 का रिकॉर्ड बेहद शर्मनाक है. सड़कों की हालत जर्जर हो रही है और पीने का पानी उपलब्ध कराने में सरकार की कोई खास उपलब्धि नहीं है. बिजली के उत्पादन में भी मनमोहन सिंह की सरकार फिसड्डी रही है. सरकार द्वारा संचालित थर्मल पावर प्लांट पिछले चार सालों में कोयला उपलब्ध न होने का रोना रोता रहा. मनमोहन सिंह भी हर जगह अपने भाषणों में कोयले की कमी का गीत गाते रहे, जबकि उन्होंने ही अपनी कलम से 52 लाख करोड़ रुपये का कोयला लुटवा दिया. स़िर्फ लुटवाया ही नहीं, बल्कि पकड़े भी गए. आज कोयला घोटाले के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के क्रियाकलापों पर जो टिप्पणी की है, वह सचमुच शर्मनाक है. इसमें कोई शक नहीं कि मनमोहन सिंह की सरकार ने पिछले चार सालों में लोगों को स़िर्फ धोखा देने का काम किया है.
चार साल की यूपीए-2 सरकार के बारे में प्रधानमंत्री ने इनक्लूसिव ग्रोथ (समावेशी विकास) का ढोल पीटा. वैसे यह कहना पड़ेगा कि मनमोहन सिंह ने इनक्लूसिव ग्रोथ का नाम लेकर एक बार फिर लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश की. उन्होंने इन्क्लूसिव ग्रोथ की बात कहकर यह दावा किया कि भारत के ग्रामीण इलाकों में विकास और खपत 3 फ़ीसद की दर से बढ़े. प्रधानमंत्री ने एक बार फिर लोगों को बरगलाने की कोशिश की. ग्रामीण विकास दर राष्ट्रीय विकास दर से कम है. अगर स़िर्फ 3 फ़ीसद की दर से ग्रामीण विकास हो रहा है, तो इसका मतलब यही है कि देश के 70 फ़ीसद इलाके पिछड़ रहे हैं और शहरों का विकास ज़्यादा हो रहा है. शहर और गांव के बीच की खाई बढ़ रही है. जब भी शहर और गांव के बीच खाई बढ़ती है, तो देश में असंतोष बढ़ता है. यही वजह है कि देश में नक्सलियों की पकड़ मजबूत हो रही है. यह देश के सामने सबसे बड़ा ख़तरा है, लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान ही नहीं है. अब जहां तक बात इन्क्लूसिव ग्रोथ की है, तो इसका मतलब यही होता है कि विकास का वह रास्ता, जिसमें ग़रीबों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं एवं सभी वंचित वर्गों को विकास में हिस्सेदारी और लाभ मिल सके.
अब जरा वंचित वर्गों के विकास और सशक्तिकरण पर यूपीए-2 की नीतियों को परखते हैं. उत्तर प्रदेश में जब विधानसभा चुनाव हुए, तो उससे पहले यूपीए-2 ने रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट लागू करने का शिगूफा छोड़ा, लेकिन देश के मुसलमानों ने कांग्रेस की इस चाल को भांप लिया. मुसलमानों को नौकरियों में आरक्षण के नाम पर यूपीए ने खुलेआम धोखा दिया. महिलाओं के आरक्षण का बिल आज भी लटका हुआ है. आश्‍चर्य की बात तो यह है कि दलितों को प्रमोशन में आरक्षण देने के नाम पर यूपीए ने उसका भी राजनीतिकरण कर दिया. ग़रीबों एवं किसानों को कोई राहत नहीं मिली. भूमि अधिग्रहण बिल भी लटका हुआ है. जिस सरकार में किसानों, मज़दूरों, पिछड़ों, ग़रीबों, अल्पसंख्यकों एवं आदिवासियों को कोई राहत नहीं, वह सरकार अगर इन्क्लूसिव ग्रोथ के बारे में कुछ कहती है, तो यह सरासर देश के साथ एक मज़ाक़ है.
यह सचमुच हैरानी की बात है कि मनमोहन सिंह यूपीए-2 को एक सफल सरकार मानते हैं. जबकि सच्चाई इसके उलट है. देश में गंभीर आर्थिक संकट है, अर्थव्यवस्था की रफ्तार लगातार घटती जा रही है और सरकार की नीतियां एक के बाद एक नाकाम हो रही हैं. मनमोहन सिंह की सरकार जो भी वादे करती है, उन्हें वह पूरा नहीं कर पाती. एक उदाहरण देता हूं. यह बात 2011 की है. बजट पेश करने से पहले मनमोहन सिंह ने आश्‍वासन दिया कि सरकार ऐसी नीतियों पर काम कर रही है, जिनसे देश की आर्थिक स्थिति खासी मज़बूत हो जाएगी. उन्होंने कहा कि सरकार 2011-12 में 9 प्रतिशत विकास दर हासिल कर लेगी. हालांकि कुछ समय बीतते ही सरकार को समझ में आ गया कि 9 प्रतिशत विकास दर मुमकिन नहीं है, तो उसने इस टारगेट को घटाकर 8.4 प्रतिशत कर दिया. इसके बाद एक बार फिर सरकार को लगा कि यह करना भी मुमकिन नहीं है, तो विकास दर का टारगेट घटाकर 6.9 प्रतिशत तय किया गया. कहने का मतलब यह है कि आर्थिक क्षेत्र में सरकार अपनी नीतियों और उसके परिणाम को लेकर न स़िर्फ भ्रमित रही, बल्कि वह अपनी गलतियां छुपाने के लिए आंकड़ों के साथ कलाबाजी भी करती रही. इस बार प्रधानमंत्री और कांग्रेस के नेता जिन आंकड़ों को दिखाकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, वे महज एक छलावा हैं, क्योंकि इन चार सालों में किसी भी प्राथमिक क्षेत्र में कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं हुई. मनमोहन सिंह एक अर्थशास्त्री हैं, इसलिए उन्हें यह समझना पड़ेगा कि आंकड़ों की कलाबाजी से सेमिनारों में बहस को तो जीता जा सकता है, लेकिन उससे देश नहीं चलाया जा सकता. एक सफल सरकार का मापदंड स़िर्फ यह है कि वह कम से कम अपने द्वारा तय किए गए लक्ष्यों को पूरा करे. जो सरकार अपने ही लक्ष्यों को पूरा नहीं पाई, उसे एक सफल सरकार कैसे माना जा सकता है.
मनमोहन सिंह देश या शायद विश्‍व के ऐसे अकेले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने सबसे ज़्यादा विदेशी दौरे किए. विदेशी दौरों के मामले में वे रिकॉर्ड बना चुके हैं. शायद प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें इस बात का विश्‍वास था कि वे अपने आपको एक विश्‍वस्तरीय नेता के रूप में स्थापित कर सकेंगे. खैर, पिछले नौ सालों में ऐसा बिल्कुल नहीं हो पाया. दरअसल, मनमोहन सिंह जिन बड़े देशों में गए, वहां से उन्होंने कुछ भी हासिल नहीं किया और जिन छोटे देशों में गए, वहां वे कुछ न कुछ गंवाकर ही लौटे. बावजूद इसके वे चार सालों की विदेश नीति को सफल मानते हैं. उन्होंने कहा कि भारत के रिश्ते आज अमेरिका, रूस एवं यूरोप के देशों के साथ पहले से ज़्यादा गहरे हो गए हैं, लेकिन वे बड़ी सफाई के साथ इस बात को छुपा गए कि पड़ोसी देशों के साथ भारत के रिश्ते पहले से ज़्यादा खराब हो गए हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं श्रीलंका, यहां तक कि नेपाल के साथ भी हमारे रिश्तों में खटास आई है. पाकिस्तान को यूपीए सही ढंग से हैंडिल नहीं कर सका. मुंबई धमाकों में शामिल आतंकवादियों को पकड़ने या भारत लाने में यूपीए विफल रहा. यह मसला ऐसा था, जिसके जरिए पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेनकाब किया जा सकता था, लेकिन यह मौक़ा गंवा दिया गया. मनमोहन सिंह से सबसे बड़ी गलती तब हुई, जब उन्होंने बलूचिस्तान के मामले को संयुक्त बयान में शामिल करा दिया. यूपीए सरकार की गलतियों का ही यह नतीजा है कि पाकिस्तान हमारे सैनिकों के सिर धड़ से अलग करने और सरबजीत की निर्मम हत्या की जुर्रत कर बैठता है. और तो और, अब तो बांग्लादेश, नेपाल एवं श्रीलंका भी आंखें दिखाने लगे हैं. सबसे शर्मनाक तो मालदीव का मामला है, जहां भारत का अब कोई असर ही नहीं है. हालांकि विदेश नीति पर लोगों के बीच चर्चा नहीं होती, लेकिन सच्चाई तो यही है कि यूपीए के तहत भारत की विदेश नीति सबसे ज़्यादा दिशाविहीन रही.
यूपीए सरकार पूरी तरह बड़े औद्योगिक घरानों और पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली बनी रही, चाहे वह गैस एवं पेट्रोल की क़ीमतें हों, टेलीकाम स्पेक्ट्रम का आवंटन हो, खनन, वित्तीय सेक्टर, रिटेल सेक्टर या फिर विदेशी शिक्षा संस्थान हों. सरकार की हर नीति का फ़ायदा देश के बड़े उद्योगपतियों और विदेशी कंपनियों को ही पहुंचा. पिछले चार सालों से नेताओं, उद्योगपतियों एवं दलालों के गठजोड़ जिस तरह से देश में फल-फूल रहे हैं, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया. सरकार तो बजट के जरिए भी कॉरपोरेट जगत को मदद पहुंचाने में कोई शर्म महसूस नहीं करती. हर साल लाखों करोड़ रुपये की छूट यूपीए ने पूंजीपतियों को दी. इस साल के बजट के मुताबिक, कॉरपोरेट जगत को मिलने वाली छूट 460972 करोड़ रुपये की है. इसमें 88263 करोड़ रुपये कॉरपोरेट टैक्स के रूप में माफ़ कर दिए गए, जबकि एक्साइज ड्यूटी के रूप में 198291 करोड़ रुपये और कस्टम ड्यूटी के रूप में 174418 करोड़ रुपये की छूट दी गई.
यूपीए सरकार का कोई भी विश्‍लेषण भ्रष्टाचार की चर्चा के बगैर नहीं किया जा सकता. यह इतिहास की पहली सरकार है, जिसका कोई सिटिंग मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गया हो. जब सरकार बनी थी, तब मनमोहन सिंह को लोग एक ईमानदार आदमी मानते थे, लेकिन कोयला घोटाले में जिस तरह से खुलासा हुआ, उससे यूपीए ने यही हासिल किया कि अब लोगों की नज़रों में मनमोहन सिंह ईमानदार नहीं रहे. भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का काम सरकार का है, लेकिन यह सरकार तो भ्रष्टाचार से लड़ने वाले सामाजिक नेताओं को ही अपना दुश्मन मानती है. वैसे भी उस सरकार से भ्रष्टाचार ख़त्म करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है, जो स्वयं सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में लिप्त हो. आख़िर में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को देश के निकम्मे विपक्ष का धन्यवाद अदा करना चाहिए, जिसकी अकर्मण्यता की वजह से यूपीए-2 चार सालों तक शासन कर पाया.
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